जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने की प्रक्रिया चालू है. आर्टिकल 370 और इसके साथ 35 ए के हटाने की प्रक्रिया से जुड़े भाषण में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जो भाषण राज्यसभा में दिया, उसमें आर्थिक मुद्दों को भी रेखांकित किया. मोटे तौर पर अमित शाह ने बताया कि 35 ए की वजह से प्रापर्टी खरीदने की इजाजत नहीं है. बाहर के लोग यहां बस नहीं सकते तो आखिर कोई यहां क्यों आकर निवेश करना चाहेगा. कौन उद्योग धंधे लगाना चाहेगा.
तकनीकी तौर पर अगर किसी को मिल्कियत नहीं मिलेगी, तो कोई क्यों यहां की संपत्ति में निवेश करेगा. यह मुद्दा रखते हुए अमित शाह ने रेखांकित किया कि यहां पर संपत्ति के रेट बहुत ज्यादा नहीं बढ़ते इसलिए कि यहां खरीदार नहीं हैं. खरीदार इसलिए नहीं है कि बाहर के खरीदारों को आने की इजाजत नहीं है. इसलिए कुल मिलाकर जम्मू-कश्मीर का हाल खऱाब है.
35 ए हटेगा, तो बाहर से लोग आएंगे, बाहर से निवेश आएगा, यहां के नौजवान की बेरोजगारी दूर होगी. यह बात अमित शाह ने तब कही जब वह आर्टिकल 370 और 35 ए को हटाने की पुरजोर वकालत कर रहे थे.
- जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था के आंकड़े बताते हैं कि केंद्रीय योजनाओं की करीब दस प्रतिशत हिस्से के बराबर की रकम इसको 2000-2016 के बीच मिलती रही है, जबकि इसकी जनसंख्या पूरे देश की जनसंख्या की करीब एक प्रतिशत है. बाहर के लोग निवेश नहीं कर सकते.
- बाहर के लोग उद्योग नहीं लगा सकते. तो नया रोजगार कहां से आएगा. सेंटर फार इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई के आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2016 से जुलाई 2019 के बीच जम्मू-कश्मीर ने बेरोजगारी के चार्ट में टॉप किया है. मासिक औसत बेरोजगारी दर जम्मू-कश्मीर में इस अवधि में 15 प्रतिशत रही है.
- इस अवधि में राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 6.4 प्रतिशत रही है. पूरे देश के मुकाबले दोगुने से ज्यादा बेरोजगार हैं जम्मू-कश्मीर में. पर बाहर का निवेश नहीं आ सकता. बाहर के लोग नहीं आ सकते. जमीन की नई मांग ना पैदा होने की वजह से वहां प्रापर्टी के रेट भी सुस्ती के साथ बढ़ते हैं.
- ये सारी स्थितियां जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए तो ठीक नहीं हैं, साथ में जम्मू-कश्मीर की स्थितियों का सीधा असर समग्र अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है. यह अनायास नहीं है कि जब आर्टिकल 370 हटाने के और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के दस्तावेज जब राज्यसभा में पेश किये जा रहे थे, तब बहुत तरह की आशंकाओं के चलते शेयर बाजार में सूचकांक गिर रहे थे.
- कश्मीर एक विकट धंधा बना हुआ है, जिसमें मुफ्ती, अब्दुल्ला, आतंकवादी , पाकिस्तान जाने कितनों के हित हैं. इन स्वार्थों के प्रगाढ़ होने में बहुत लंबा वक्त लगा है, इन्हे तोड़ना आसान ना होगा.
- जम्मू- कश्मीर में सिर्फ दो मुख्य राजनीतिक दल ऐसे हैं, जिनकी निष्ठा भारतीय संविधान के प्रति असंदिग्ध है-भाजपा और कांग्रेस. बाकी सब पाकिस्तान के हाथों में भी खेलने में कोई गुरेज नहीं करेंगे. यह कश्मीर की राजनीतिक सचाई है, एक नई आर्थिक सचाई को इस परिप्रेक्ष्य में समझना होगा.
- अगर नए उद्योग धंधे वहां लगे और नौजवानों के हित नए धंधों, नए रोजगारों में बने, तो आतंक के प्रति एक लगाव जुड़ाव यूं भी कम होगा. पर यह एक लंबी प्रक्रिया है. इसलिए देखने की बात यह है कि कितनी बड़ी कंपनियां, कितने बड़े उद्योग वहां निवेश करते हैं.
- अब सरकार के पास तो खुली छूट है. रियायतों के जरिये केंद्र सरकार उद्यमियों को जम्मू-कश्मीर में निवेश के लिए प्रेरित कर सकती है. पब्लिक सेक्टर कंपनियों के जरिये वहां निवेश की नई धारा शुरू की जा सकती है.