लोकसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन का समय और बढ़ाया जाना चाहिए तो ऐसे समय में आपको ये जानना चाहिए कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन नहीं बल्कि राज्यपाल शासन लगता है. हालांकि इसे सामान्य बोलचाल में राष्ट्रपति शासन कह लिया जाता है. देश के तमाम राज्यों में अगर पॉलिटिकल पार्टियां राज्य में सरकार नहीं बना पातीं या फिर बनी हुई सरकार संवैधानिक रूप से चलने में नाकाम हो जाती है, तो उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है.
बाकी राज्यों के बरक्स जम्मू व कश्मीर में स्थिति कुछ अलग है. यहां राष्ट्रपति शासन नहीं, बल्कि राज्यपाल शासन का प्रावधान है. ऐसा क्यों होता है और इस व्यवस्था का इतिहास क्या रहा है? अस्ल में, जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 92 के तहत राज्य में छह माह के लिए राज्यपाल शासन लागू किया जाता है लेकिन राज्यपाल शासन के लिए राष्ट्रपति की मंज़ूरी ज़रूरी है.
भारतीय संविधान में जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा मिला है. देश का इकलौता ऐसा राज्य है जिसके पास अपना संविधान और अपना अलग झंडा भी है. देश के अन्य राज्यों की बात करें, तो संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाए जाने का प्रावधान है लेकिन ये जम्मू कश्मीर के लिए लागू नहीं होता. जम्मू-कश्मीर में उसके अपने संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत राज्यपाल शासन लागू किया जाता है, हालांकि देश के राष्ट्रपति की मंज़ूरी ज़रूरी होती है.
भाजपा के साथ गठबंधन टूटने पर महबूबा मुफ्ती सरकार गिरने के बाद जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाया गया था.
जम्मू-कश्मीर में दो स्थितियों में राज्यपाल शासन लगाया जाने की व्यवस्था है : या तो राज्य की विधानसभा निलंबित हो जाए या फिर राज्य की विधानसभा को भंग कर दिया जाए.
केंद्र को कब होता है दखल देने का हक?
जम्मू-कश्मीर में भारत की सरकार विशेष स्थितियों में ही राज्यपाल शासन लगा सकती है. युद्ध की स्थिति हो या देश पर किसी किस्म का बाहरी आक्रमण हो, तो भारत सरकार राज्य में आपातकाल लगा सकती है. राज्य में अंदरुनी गड़बड़ियों के चलते केंद्र सरकार को हक नहीं है कि वह जम्मू-कश्मीर में आपातकाल लगा सके. रक्षा, विदेश नीति, वित्त और संचार से जुड़े मामलों पर ही केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में अपने अधिकार रखती है.
जम्मू कश्मीर के अंतिम शासक हरि सिंह.
कैसे बनी थीं ये व्यवस्थाएं?
देश को आज़ादी मिलने के समय जम्मू-कश्मीर के सामने दो विकल्प थे कि वो पाकिस्तान में शामिल हो सकता था या हिंदुस्तान में. कश्मीर की मुस्लिम बहुल जनता का मन पाकिस्तान में शामिल होने का था लेकिन राज्य के अंतिम शासक महाराज हरिसिंह भारत में शामिल होने की इच्छा रखते थे. हरिसिंह ने भारत के साथ ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ़ ऐक्सेशन’ दस्तावेज़ पर दस्तखत कर जम्मू-कश्मीर को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिलवाया.
उस समय जम्मू-कश्मीर का विलय तो भारत में हो गया लेकिन विशेष प्रावधानों के चलते वहां मुख्यमंत्री नहीं बल्कि प्रधानमंत्री और राज्यपाल नहीं बल्कि सदर-ए-रियासत के पद होते थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को जम्मू-कश्मीर का प्रधानमंत्री बनवा दिया था. यह विशेष व्यवस्था 1965 तक रही. तब धारा 370 में बदलाव किए गए और फिर अन्य राज्यों की तरह राज्यपाल और मुख्यमंत्री के पद जम्मू-कश्मीर के लिए भी बने.
पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ शेख अब्दुल्ला
जम्मू-कश्मीर में पहली बार 1977 में राज्यपाल शासन लगाया गया था. तब कांग्रेस ने शेख़ अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेशनल कॉन्फ्रेंस से अपना समर्थन वापल ले लिया था.